हम भी रहते हैं यहाँ इस छोटे अजायब खाने में,
हम कैद हैं यहाँ और आप दुनिया के कैदखाने में,
आपको खुश देखकर हम भी ये समझ लेते हैं कि,
यही क्या कम है की हम नहीं हैं किसी वीराने में॥
कब तक यूँ ही चिंता में ग़मगीन रहोगे,
खुश रहना भी कोई बड़ी चीज नहीं होती,
आप क्या समझते हैं कि हम अनजान हैं,
जैसी हमें किसी की कोई फिकर नहीं होती॥
अब तो शायद हम सब, भूल चुके हैं घर भी अपना,
दम घुटता है यहाँ हमारा, कभी हंसी नहीं आती है,
हमें देख बच्चों की आँखे, जब थोडा सा मुस्काती हैं,
यह जीवन का उद्देश्य हमें, थोडा जीना सिखलाती है॥
अब इश्क के तकाजे करने नहीं पड़ते,
ये प्रेम के दो लफ्ज सीखने नहीं पड़ते,
हम पखेरू हैं, पैदाइस इसी जमीं की,
जहाँ प्यार के बीज बोने नहीं पड़ते॥
ये कैद भी स्वर्ग से कम नहीं अब तो,
आशिक हो साथ गर मुस्कुराने के लिए,
क्योंकि इक कोना ही बहुत है अब तो,
हमें अपने रूहेदिल मिलाने के लिए॥
आज की पोस्ट तो बहुत अच्छी लगी....गणेश चतुर्थी की शुभकानाएं
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