खेल खेल की जंग है या, हिन्दू मुस्लिम दंगे हैं? न हरा रंग है न है भगवा, देखो ये पूरे नंगे हैं। इन्हें ना ही नफरत, ना ही कुछ पाने की हसरत, जान लिया है मैंने अब तो, बस मानव ही बेढंगे हैं॥ किसने कहा श्रेष्ठ हैं मानव, ये तो सब भिखमंगे हैं। ये तो सब भिखमंगे हैं॥ -- नीरज द्विवेदी
Monday, August 15, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
प्रिय नीरज द्विवेदी जी अभिवादन ..देवी की और आप की कृपा से आनंद आ गया ..कुछ साथ में लिख तो दें जनाब ..छवियों के बारे में क्या कहाँ की ....कैसे ..जैसे केला एक ही पेड़ का लबादा ...या कार्बाइड का गुण ....
ReplyDeleteधन्यवाद
भ्रमर ५
Oh...Nice Clicks...
ReplyDeleteसुरेन्द्र जी बहुत सुक्रिया, मैं अगली पोस्ट से ध्यान रखूँगा.
ReplyDeleteऔर चैतन्य जी, आप आते हो तो अच्छा लगता है. आभार